कुफरी शिमला-:

शिमला के पास स्थित यह स्थान भी एक छोटा पहाड़ी इलाक़ा है जहाँ यात्री मुख्य रूप से हाईकिंग, ट्रैकिंग आदि जैसी रोमांचित गतिविधियों के लिए लोकप्रिय है। लोग यहाँ अपनी यात्रा को रोमांचित करने आते है। शिमला की बर्फबारी देखने का मौका भी आपके हाथ लगेगा। ये जगह प्राकृतिक बगीचों व पिकनिक स्पॉट के तौर पर भी प्रसिद्ध है। अप्रैल से जून का समय व दिसंबर से फरवरी का समय यहाँ आने का सबसे उचित समय है ताकि आप बर्फबारी के समय स्किइंग का लुत्फ़ उठा सकेंगे।

ग्रीन वेली

शिमला के सबसे मनमोहक दृश्य बिंदुओं में से एक ग्रीन वैली मानी जाती है और ऐसा क्यों नहीं होना चाहिए? कुछ बॉलीवुड फिल्मों में प्रदर्शित इस घाटी ने हाल के वर्षों में बहुत लोकप्रियता हासिल की है और यह जोड़ों के लिए शिमला में घूमने के लिए सबसे शांत स्थानों में से एक है! क्या आपने इस प्रकृति स्वर्ग के चारों ओर पूर्ण आनंदमय दृश्यों का आनंद लेने के लिए अपना बैग अभी तक पैक कर लिया है? ग्रीन वैली के दृश्य से आपको यही उम्मीद करनी चाहिए।

फॉरेस्ट सैंचुरी

यह उन सभी लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है जो शिमला की खूबसूरत हरियाली को देखना चाहते हैं और यहां सामंजस्यपूर्ण रूप से सह-अस्तित्व में रहने वाले कई जानवरों का सामना करके एड्रेनालाईन रश का अनुभव करना चाहते हैं। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं तो यह जगह आपको जरूर देखनी चाहिए। आपको विभिन्न प्रकार के जानवर जैसे भालू, तेंदुआ, सियार, हिरण और भी बहुत कुछ देखने को मिलेगा। शिमला रिजर्व वन अभयारण्य शिमला के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक माना जाता है।

हिमालयन बर्ड पार्क

पक्षियों से प्रेम करने वालों के लिए यह स्थान सबसे उचित है। यहाँ आपको जाने-पहचाने व कुछ अनदेखे पक्षियों को देखने का अवसर प्राप्त होगा। हर तरफ चिड़ियों की चहचहाट आपको भोर का स्मरण कराऐंगी जैसे हर सुबह चिडियाँ चहकती हुई जाती हैं। हरियाली युक्त वातावरण में आपको कुछ पक्षी पेड़ की शाखाओं पर दिखेंगे व कुछ आपस में बात करते व कुछ अपने बच्चों के साथ समय बिताते हुए। आप यहाँ आकर मंत्र मुग्ध हो जाऐंगे। आपको यहाँ हिमाचल प्रदेश का स्थानीय पक्षी व हिमालयन मोनल देखने को भी मिलेगा।

चायल

चायल को दुनिया की सबसे ऊंची क्रिकेट पिच मिली है और इसमें शक्तिशाली देवदार और देवदार के पेड़ हैं जो एक शांत और शांत वातावरण प्रदान करते हैं। यह स्थान प्रसिद्ध चैल पैलेस का घर भी है जो अपनी वास्तुकला प्रतिभा के लिए जाना जाता है। चूंकि यह शिमला से अधिक ऊंचाई पर है, इसलिए कोई नीचे टिमटिमाती शहर की रोशनी के दृश्य का आनंद ले सकता है, जबकि रात के सुंदर रोशनी वाले आकाश को देखकर तारे का आनंद ले सकता है।

हाटकोटी

राजा ने चमत्‍कार देखकर किया मंदिर बनाने का निश्‍चय

अद्भुत हिमाचल’ में हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे जहां एक कलश की अद्भुत कहानी यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को अपनी ओर खींचती है. जुब्बल कोटखाई में मां हाटेश्वरी के प्राचीन मंदिर में ये कलश मौजूद है . यह शिमला से लगभग 110 किमी. की दूरी पर स्थित है. मान्यता है कि इस प्राचीन मंदिर का निर्माण 700-800 वर्ष पहले हुआ था.

अज्ञातवास के दौरान आए थे पांडव

हाटकोटी मंदिर रोहडू के पुजारी दलीप शास्त्री का कहना है हाटकोटी माता को महिषासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में आने से अपार लोगों को शांति का अनुभव होता है। यहां पर दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं। नवरात्र में यहां पर श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए पुलिस व होमगार्ड के जवान तैनात किए जाते हैं, ताकि लोगों को आने-जाने में सुविधा हो। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां अज्ञात वास के समय में पांडव आए थे और यहां कुछ दिन बिताए। इसका प्रमाण आज भी यहां देखने को मिलते हैं।

माता हाटेश्वरी का मंदिर विशकुल्टी, राईनाला और पब्बर नदी के संगम पर सोनपुरी पहाड़ी पर स्थित है. मूलरूप से यह मंदिर शिखर आकार नागर शैली में बना हुआ था, लेकिन बाद में एक श्रद्धालु ने इसकी मरम्मत कर इसे पहाड़ी शैली के रूप में परिवर्तित कर दिया.

मां हाटकोटी के मंदिर में एक गर्भगृह है जिसमें मां की विशाल मूर्ति विद्यमान है. यह मूर्ति महिषासुर मर्दिनी की है. इतनी विशाल प्रतिमा हिमाचल में ही नहीं बल्कि भारत के प्रसिद्ध देवी मंदिरों में भी देखने को नहीं मिलती. प्रतिमा किस धातु की है इसका अनुमान लगाना मुश्किल है.

मान्यता

यहां के स्थायी पुजारी ही गर्भगृह में जाकर मां की पूजा कर सकते हैं. मंदिर के बाहर प्रवेश द्वार के बाईं ओर एक ताम्र कलश लोहे की जंजीर से बंधा है जिसे स्थानीय भाषा में चरू कहा जाता है. चरू के गले में लोहे की जंजीर बंधी है. कहा जाता है कि इस जंजीर का दूसरा सिरा मां के पैरों से बंधा है.

मान्यता है कि सावन भादों में जब पब्बर नदी में अत्यधिक बाढ़ आती है तब हाटेश्वरी मां का यह चरू सीटियों की आवाज निकालता है और भागने का प्रयास करता है. इसलिए चरू को मां के चरणों के साथ बांधा गया है. लोककथाओं के मुताबिक मंदिर के बाहर दो चरू थे, लेकिन दूसरी ओर बंधा चरू नदी की ओर भाग गया था.पहले चरू को मंदिर पुजारी ने पकड़ लिया था.

बता दें कि चरू पहाड़ी मंदिरों में कई जगह देखने को मिलते हैं. इनमें यज्ञ के दौरान ब्रह्मा भोज के लिए बनाया गया हलवा रखा जाता है. कहा जाता है कि हाटकोटी मंदिर की परीधि के ग्रामों में जब कोई विशाल उत्सव, यज्ञ, शादी का आयोजन किया जाता था तो हाटकोटी से चरू लाकर उसमें भोजन रखा जाता था. कितना भी बांटने के बाद चरू से भोजन खत्म नहीं होता था.

लोक गाथा

एक लोकगाथा के अनुसार देवी के संबंध में मान्यता है कि कई दशक पहले एक ब्राह्माण परिवार में दो सगी बहनें थीं. उन्होंने अल्प आयु में ही सन्यास ले लिया और घर से भ्रमण के लिए निकल पड़ी. उन्होंने संकल्प लिया कि वे गांव-गांव जाकर लोगों के दुख दर्द सुनेंगी और उसके निवारण के लिए उपाय बताएंगी. दूसरी बहन हाटकोटी गांव पहुंची जहां मंदिर स्थित है. उसने यहां एक खेत में आसन लगाकर ध्यान किया और ध्यान करते हुए वह लुप्त हो गई.

जिस स्थान पर वह बैठी थी वहां एक पत्थर की प्रतिमा निकल पड़ी. इस आलौकिक चमत्कार से लोगों की उस कन्या के प्रति श्रद्धा बढ़ी और उन्होंने इस घटना की पूरी जानकारी तत्कालीन जुब्बबल रियासत के राजा को दी. राजा ने इस घटना को सुना तो वह तत्काल पैदल चलकर यहां पहुंचे और इच्छा प्रकट करते हुए कहा कि वह प्रतिमा के चरणों में सोना चढ़ाएगा जैसे ही सोने के लिए प्रतिमा के आगे कुछ खुदाई की तो वह दूध से भर गया. उसके बाद से राजा ने यहां पर मंदिर बनाने का निर्णय किया और लोगों ने उस कन्या को देवी रूप माना और गांव के नाम से इसे ‘हाटेश्वरी देवी’ कहा जाने लगा.

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